ब्रिटिशकाल में देश की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला में विदेश से आने वाली डाक की सूचना घंटी बजाकर दी जाती थी। जैसे ही विलायती डाक पोस्ट ऑफिस शिमला में पहुंचती थी तो एक लाल रंग का झंडा डाकघर के ऊपर लहराया जाता था। डाक विभाग का कर्मी, जिसे घंटीवाला कहा जाता था, घंटी बजाकर दफ्तर से पीछे स्थित स्टाफ कालोनी में रहने वाले डाकिये को बुलाता था।
आधी रात के वक्त भी अंग्रेज अफसरों को डाक पहुंचाई जाती थी। शहर के डाकखानों में डाक मेल रिक्शा से पहुंचाई जाती थी। मेल रिक्शा को चार कर्मी चलाते थे। इसका रंग लाल होता था। वर्ष 1905 तक कालका से शिमला तक टांगे पर डाक पहुंचाई जाती थी। माल रोड पर स्कैंडल प्वाइंट से सटी मुख्य डाकघर की बिल्डिंग हेरिटेज भवनों में शुमार है। आज यहां का नजारा बदला-बदला सा है। डाकघर की बिल्डिंग नए रंग रूप में नजर आती है।
मुख्य डाकघर में तैनात फिलेटली ब्यूरो के प्रमुख प्रेम लाल वर्मा साल 1911 से 1955 तक पोस्ट आफिस में तैनात हेड पोस्ट मैन राम कृष्ण से हुई बातचीत को याद करते हुए बताते हैं कि ब्रिटिश सरकार चिट्ठियों को जल्द से जल्द पहुंचाने के पक्षधर थी। वायसराय भी मेल रिक्शा के आने पर उसे रास्ता देते थे। ग्रीष्मकालीन राजधानी होने के चलते शिमला राजनीति का मुख्य केंद्र था। कई गोपनीय पत्र भी डाक विभाग के माध्यम से वितरित होते थे।
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